दर्द के धागे ढाका के रेशम से भी महीन होते हैं, दिल अगर अंगूठी होता तो लाखों धागे एक साथ गुज़र जाते उससे बारम्बार। किसी के छूने से ज़िंदा होती हैं यादें, एहसास और ख़्वाहिश और फिर दुनिया भर को छूते हुए घूमते हैं कि उस पल को दोबारा जी सकें।
दर्द की उनसे पूछिए मिलकर भी मिले नहीं , होकर भी हुए नहीं , जिनके मर्ज़ लाइलाज हैं और तक़लीफ़ बेपनाह और इसपर सितम तो देखिये कुदरत का उन्हें ही दी हैं सबसे नीमकश आंखें , सबसे गहरी मुस्कराहट , लबों की जुंबिश , उँगलियों की नरमी कि हर पोर से ज़िन्दगी रिसती है उनमें जो क़तरा -क़तरा मरते हैं हसरत में।
बहुत महीन, बहुत गहरा
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Shukriya
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